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श्रावण मास का महत्व क्या है?

श्रावण मास का आरंभ कब होता है?

श्रावण मास का आरंभ हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का पाँचवा मास है।ह महिना भगवान शिव की विशेष आराधना के लिए महत्तव रखता हैशिवजी को यह महिना अत्यंत प्रिय है।श्रावण में वर्षा भी अधिक होती है जिसका कारण चारो और हरियाली छा जाती है।इस बार चारो और खुशहाली ही खुशहाली रहती है और प्रकृति आनंद से लहलहा रही है। यह सब हमें निर्विकार, निराकार देव दी देव महादेव के कारण ही संभव हो पाता है। ब्रह्माण्ड के रचयिता का आगमन साध ही सुख देने वाला होता है। उनके जैसा ना कोई है, था या ना कभी कोई होगाइन दिनों अनेक त्यौहार आते हैं, जो इसकी शोभा को बढ़ाते हैं।

श्रावण मास शिव को अधिक प्रिय क्यों है?

श्रावण मास में शिव को अत्यधिक प्रिय है। इस मास में शिव की पूजा करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है।इसके शिव को प्रिय होने के पीछे प्राचीनकाल की दो कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा शिव-पार्वती विवाह से संबंधित है और दूसरे सागर मंथन से।ऐसा बताया जाता है कि शिव पार्वती का विवाह इसी शुभ अवसर पर हुआ था। इसी वक्त संकर पूरी बार अपने ससुराल गए थे। दूसरी कथा के अनुसार जब देवताओ और असुरो के बीच विवाद के कारण अमृत की प्राप्ति के लिए सागर मंथन हो रहा था तो अमृत के साथ-साथ विष भी निकला था।अब सभी को ये चिंता सताने लगी है कि इस विष को कौन ग्रहण करेगा। अगर इसे ख़तम ना किया गया तो ये सारी सृष्टि में फैल जाएगा और इसे ख़त्म कर देगा। इसी चिंता को लेकर सारे देवता महादेव जी के पास गए और अपनी चिंता उन्हें बतायी. महादेव भक्त वत्सल हैं, वो सदा भक्तों की चिंता दूर करते हैं। इसलिए उन्होनें अपने कंठ में विष धारण कर लिया। उनका कंठ नीला पड़ गया इसलिए उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा। देवताओ ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए उन पर जल अर्पित किया। यह पहला अवसर था जब महादेव पर जल चढ़ाया गया था।

श्रावण का महत्वा

श्रावण का समाज व सांस्कृतिक तोर पर बहुत अधिक महत्व रखता है। इसके आगमन के बाद बहुत अधिक त्योहार आते हैं। इनमें रक्षाबंधन, तीज, नागपंचमी। एक चीज जो श्रावण, मैं अपना पृथक महत्व रखती हूं वो है कावड़ यात्रा।आइए इन सभी के बारे में थोड़ा-थोड़ा जाने।

कावड़ यात्रा : कावड़ यात्रा श्रावण के शुभ अवसर पर शिव भक्तों द्वारा शिव को प्रसन्न करने के लिए तीर्थ स्थान से गंगाजल के रूप में लाई जाती है। ये एक लंबी यात्रा होती है जो शिवरात्रि के दिन शिव पर गंगा जल चढ़ाकर पूर्ण की जाती है।आपके मन में एक प्रश्न होगा कि सबसे पहले कावड़ कोन लाया होगा। इस प्रश्न का उत्तर के विषय में अनेक मत है। इस पूरी तरह से कोई नहीं बता सकता कि सबसे पहले ये किसने किया। एक मत के अनुसार पहली कावड़ भगवान परशुराम लाए तो क्या रावण को पहला कावड़िया बताया जाता है, समुंद्र मंथन के दोरान भगवान शिव ने जो विष पिया था उसे शांत करने के लिए देवता गंगा जल लाए थे, उसका उपयोग पहली कावड़ माना गया था तो कोई कहता है कि श्रवण कुमार पहली कावड़ लाए थे जब वह अपने माता पिता को तीर्थ ले जा रहे थे तब उनको माता पिता ने गंगा स्नान की इच्छा ज़ाहिर की तब श्रवण कुमार उन्हें स्नान करके वहां से थोड़ा गंगा जल भी ले आये थे।

हरतालिका तीज : हरतालिका तीज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन वो महादेव और देवी पार्वती का पूजन करती हैं। यह व्रत निर्जला होता है।इसका संबंध शिव पार्वती के विवाह से बताया गया है।

नाग पंचमी: एक पौराणिक कथा के अनुरूप महाभारत काल में एक राजा परीक्षित हुआ करते थे। एक बार जंगल में घूमते हुए तक्षक नाम के शाप ने उसे काट लिया, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसका बदला लेने के लिए उसके पुत्र जन्मेजय ने नागदाह यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के कारण सर्प स्वयं आकार अग्नि मेंआहुति दे रहे थे। तब तक्षक के अग्राह पर ऋषि आस्तिक ने यज्ञ को रोकने का निवेदन राजा से किया। इस प्रकार सर्पो की जान बची। यह दिन पंचमी का दिन था। इसे ही नाग पंचमी कहा जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है।

रक्षाबंधन: रक्षाबंधन के दिन एक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है। इसे रक्षा सूत्र भी कहा जाता है। जिसका भाई अपनी बहन की रक्षा करता है। इसकी शुरुआत महाभारत काल से प्रारंभ हुई थी। जब श्री कृष्ण के हाथ में चोट लगी तब द्रोपती ने अपनी साड़ी के पल्लू को फाड़कर उनके हाथ पर बांध दिया था। इसी दिन के बाद से ही इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत हुई थी।

उपसंहार : श्रावण मास शिव के समान ही फलदायी होता है।जिस प्रकार शिव भक्त वत्सल है, वैसा ही सावन मास भी हरियाली और खुशहाली का प्रतीक है।शिव संसार के पालनहार है,उसका ही प्रतीत श्रावण मास है,जिसके आने से मनुष्य और पशु दोनों को जला देने वाली गर्मी से निजात मिलती है। शिव से जुड़ी हर चीज ही सुख देने वाली होती है। यही कारण है कि उनके जैसा इस संसार में कोई नहीं है। वो दया का सागर है और सदेव भक्त की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं।

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