
शिवरात्रि का अर्थ
शिवरात्रि का अर्थ है – “शिव की रात्रि”।हिन्दू पंचांग के अनुसार यह फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है । यह दिन शिव और शिव भक्तों दोनों के लिए विशेष है।शिव इस दिन भक्तों का कल्याण करते हैं क्योंकि शिव का अर्थ ही कल्याण है।इस शुभ दिन पर शिव से की गई मनोकामना पूरी होती है। इस दिन स्त्री और पुरुष दोनों ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं।कई जगहों पर इस अवसर पर मेले और नृत्य का आयोजन होता है।इस अवसर पर भगवान शिव की सुंदरता दिखाने के लिए उन्हें फूलों और कई आभूषणों से सजाया जाता है।भक्तगण फल, फूल और दूध लाकर अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं।भगत शिव को देखने के लिए बेताब रहते हैं।इस दिन मंदिर में बहुत भीड़ होती है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि सारा शहर ही यहां आ गया हो।
शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
शिवरात्रि जैसे पवित्र दिन को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।एक कथा के अनुशार भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के विवाद के बीच में आकर उन दोनों को उनके सृष्टि के कल्याण संबंध कार्य बताए और उन दोनों को अनेको वरदान दिए, इस अवसर पर शिव पहली बार दोनों के बीच में शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए इसलिए इस महान दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।इस संबंध में एक दूसरी कथा भी है। इसमे इस दिन को मनाने के पीछे का कारण भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह जैसा शुभ अवसर को भी माना जाता है।जिसके कारण इस शुभ दिन को शिवरात्रि के नाम से जाना गया।एक अन्य कथा के अनुसार जब समुंद्र मंथन किया गया तब देवता और असुरों को अमृत के साथ विष की प्राप्ति भी हुई थी, तब संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की प्रार्थना लेकर देवता शिवजी के पास गए। शिव जी ने सारे संसार की रक्षा के लिए विष को अपने कंठ में धारण कर लिया , जिस कारण उनका नाम नीलकंठ हो गया था।शिव जी को भक्त प्रेमी कहा गया है। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
शिव पूजन की विधि
वैसे तो शिव पूजन पूर्ण विधि विधान से किया जाए तो ये अत्यंत कठीन है, क्योंकि एक आम आदमी जिसे वैदिक मंत्रों का ज्ञान नहीं है उसके लिए तो ये असंभव है।केवल पंडित ही इन कामो में निपुण होते हैं।इसलिए एक साधारण मनुष्य के लिए इतना कठिन नियम नहीं है,वो केवल जल, फल एवं दूध से शिव पूजा ओम शिवाय नमस्तु भयं मंत्र का जाप कर सकता है।यदि कोई व्यक्ति निर्धन है या वो दूध फल आधी लेन में समर्थ नहीं है तो शिव का भगत वत्सल होने के कारण वो तो केवल उसके द्वार चढ़ाए गए जल से ही प्रसन्न हो जाएंगे।विभिन्न -विभिन्न जगहो पर अनेक तरिकों से शिव की पूजा की जाती है।रात को लोग पकवान बनाकर शिव को याद करके अपना व्रत संपूर्ण करते हैं।
निष्कर्ष
शिव का पूजन अत्यन्त फलदायी होता है।शिव ही जगत के पालनहार है और शिव ही संहारक है इसका अर्थ ये है कि शिव ही कर्ता है और शिव ही कर्म है। इस संसार में जो कुछ है वो सब शिव ही है उनके अलावा कुछ नहीं है, सब कुछ शून्य है।शिव सदैव भक्त की रक्षा करते हैं, इसके कई प्रसंग पुराणों में भी मौजूद हैं।शिव निराकार है और विकार रहित है।शिव भगत वात्सल्य है, इनके इसी गुण के कारण मनुष्य और देवता ही नहीं राक्षस भी इनके भक्त हैं।